प्राचीन इतिहास- द्वितीय प्रश्न पत्र
भारत के प्राग ऐतिहासिक युग
Siddharth University तथा gorakhpur University
प्रश्न(1)-भारत की प्राग ऐतिहासिक चित्रकार पर एक निबंध लिखिए
या
भारतीय चित्रकला की प्रदोत ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए
उत्तर- चित्र में अंकित मूर्तियों को चित्र कहते हैं चित्रकार या सिर्फ के मन में जो मानसी शिफ्ट होती है उससे ही शिल्प और चित्र का जन्म होता है|
आदिमानव खुले जंगल में या नदी घाटियों में पत्थर के औजार से शिकार करता हुआ जीवन निर्वाह करता था उसके बाद वह नदी विरोधियों में जल की सुविधा देखकर वहीं प्राकृतिक कंगारू में रहने लगा उन्हें लोक भाषा में आज भी दरी कहते हैं इन गद्दारों की बात पर लाल गेरू तकिया धारू पत्थर से बनाए हुए बहुत से वंचित पाए गए हैं जिन्हें प्रस्तुत चित्र कहते हैं|लोक भाषा में उन्हीं के लिए रतक की पुतरिया शब्द चालू है ए
1- मध्यप्रदेश में महादेवी पहाड़ी में पंचवटी नामक स्थान के इर्द-गिर्द यहां एक के ऊपर एक चढ़ी हुई चित्रों की चार तहे मिलती हैं|
2- मध्यप्रदेश में रायगढ़ के समीप सिंघानपुर और कबरा पहाड़ के चित्र
3- बिंदकी कैमूर पर्वत माला के भीतर सोन नदी की घाटी के मिर्जापुर क्षेत्र में कई स्थानों में रतक की पुतरिया के चित्र विद्वान हैं|
4- बांदा जिले के मनकापुर स्थान में|
1 सबसे अधिक संख्या में दर्जी चित्र महादेवी पहाड़ी प्राप्त हुई है|पंचवटी के 5 मील के मंडल में 50 से ऊपर धारियों में चित्र मिलते हैं, ऐसे ही एक स्थान होशंगाबाद से ढाई मिल पर आजमगढ़ है|
कुछ विद्वान का कहना है कि इन चित्रों से उस युग के मानव की संस्कृत का व्यवहार परिचित प्राप्त होता है|लिखे हुए चित्र के ऊपर- नीचे चार परते हैं
पहली परत:--
इसमें कठखरे कड़े हुए जैसे चित्र हैं इसमें कुछ पहले के हैं कुछ बाद के| पहले की चित्र मनुष्य और पशुओं की पीली नुमा आकृति है जोब लाल और पीले रंगों में लिखी हुई है 4 तीलियों से गिरे हुए 10 दिन उमा झाड़ के ऊपर तिकोना सिर जोड़ा गया है और काया के भीतर की सुनी जगह में कुछ लहरिया दार खड़ी रेखाएं बनाई गई हैं मानो पेड़ की छाल और पलक जैसे वस्त्र की सूचक हो यह चित्र कुछ कम मिले हैं और इसके ऊपर दूसरी तरह के चित्र उन्हें ढूंढते हुए प्राप्त होते
दूसरी परत:-
इसमें भूरिया पीले रंग के चित्र भोड़े होते हुए भी स्वाभाविकता लिए हुए हैं यह भी पहले के और बाद के हैं पहले का चित्र बेडौल और कुछ स्वभाविक चाल के हैं उनकी गर्दन लंबी बाल लहराते हुए सिर बेलिया टांगे सिलाई जैसी और घाघरे किनारे किनारी दार है|उत्तर कालीन दूसरी श्रेणी के चित्रों में सम पूजन या एक जुट लिखने का स्वभाव भी आ गया है उनकी हाथों में प्राया धनुष बाण दिखाया गया है जो पहले के चित्रों में कहीं-कहीं था धातु की बनीनोक दार तीर जो पहली श्रेणी की मानो प्रयोग मिलना रहे थे दूसरी श्रेणी के युग में भी काम में आते हैं किंतु उसी के साथ गाजदार वालों का भी प्रयोग आमतौर पर होता रहा मानव धनुष बाण लेकर और पशुओं के मुखडे लगाकर थरथराहट पर एक नाच का सुख लूटते थे बांस की लंबी चिड़िया पर चढ़कर ऊंचे पेड़ों से याद झुकी हुई पहाड़ियों से लटकते साहब की छतों से जहर उतारने का भी इन्हें बहुत शौक था जो तीसरी श्रेणी के मानव में भी जारी रहा महादेवी पहाड़ी की कुछ अहेरिया और नाचते हुए चित्रों में तुल कालीन मिर्जापुर क्षेत्र के दरी चित्र हैं
तीसरा और चौथा परत:-
इसमें सांस्कृतिक रहन-सहन का नक्शा बदल जाता है आदिम कालीन शिकारियों के स्थान में शस्त्र धारी सैनिक और घुड़सवार घोड़ा धनुष बाण और तलवार से युद्ध करते हुए दिखाए गए हैं गायों के लिए धारा मारने वालों की चित्र भी हैं घरेलू जीवन के चित्र भी बहुत है|होशंगाबाद की निकट आजमगढ़ के दर्रे चित्रों में एक बड़े हाथी का चित्र है जो वहां सबसे पुराना है और दूसरे श्रेणी के उत्तर कालीन चित्रों के साथ काहे महादेव पहाड़ी के उत्तर कालीन तीसरे श्रेणी और महा पूर्व कालीन चौथी श्रेणी के चित्रों की चूड़ीदार वालों या खोपा टांगों के बीच में लाग दार धोती तीर कमान तरकस सीधी तलवार पति नुमा जूली और कॉल ढाल की चित्र भी मिलते हैं
3 मिर्जा क्षेत्र के चित्र:-
सिंघनपुर रायगढ़ के पुतरिया चित्र महानदी के क्षेत्र में हैंपंचवटी की चित्र नर्मदा नदी की जोड़ी में है और मिर्जापुर की दर से चित्र सोना नदी की घाटी में है यह तीनों नदियां घने जंगलों और पहाड़ियों से भरे हुए जहां आदि मानव सुरक्षा से निवास कर सकता है सोना नदी की घाटी में बनी चित्रों में खेत और नृत्य के चित्र हैं यहां कुछ कुछ सवाल पालतू घड़ी का हाथ लिया या कुंभ की की मदद से जंगली हाथी पकड़ते हुए दिखाया गया है मानव आकृतियां सूचित करती है कि यह चित्र पंचवटी की पहली दूसरी श्रेणी की पुत्रियां से मिलती है यहां के एक चित्र में एक चुटीला सूअर मुख बाय व्यथा का अनुभव करता हुआ दिखाया गया है|
चट्टानों पर खुदे चित्र:-
रतक की पुत्रियों की चित्र तो पहाड़ीखो की भीत या छत पर लिखे जाते थे किंतु चट्टानों पर खरोच ए हुए चित्र खुले स्थानों पर हैं लिखित चित्रों की अपेक्षा इन उत्कृष्ट चित्रों का विस्तार भी अधिक है अटक में लगभग 6 मील नीचे की और सिंध के किनारे बंद होगी पंजाब और घड़ियाल आ नामक स्थान में खुली चट्टानों पर खुद ही चित्रों में मानव और पशुओं की आकृति है जिसमें घोड़े ऊंट और हाथियों पर चढ़े हुए योद्धाओं हथियारों से लैस होकर लड़ते हुए दिखाए गए हैं उड़ीसा के संबलपुर हैदराबाद में रायचूर और मद्रास की बिलारी स्थान में चट्टानों पर खुदे हुए अनेक चित्र मिलते हैं इन्हें चित्र तो क्या चट्टानों की चितई करके बनाई हुई आकृतियां करना चाहिए
पाठ -2 घाटी की कला
प्रश्न 1- हड़प्पा की वस्तुओं की प्रमुख विशेषताओं पर प्रकाश डालिए?
या
भारतीय स्थापत्य कला की प्रमुख विशेषताओं की विवेचना कीजिए?
या
हड़प्पा के वक्त कला पर प्रकाश डालिए|
उत्तर--सिंधु सभ्यता में संपादित उल्टी खंडों पर एक विहंगम दृष्ट डालने से ज्ञात होता है कि यहां के निवासी महा निर्माणकर्ता थे --उनके स्थापत्य कौशल को समझने के लिए वहां की विकसित नगर योजना से संबंधित नगर निषेध सार्वजनिक तथा निजी भवन रक्षा प्राचीर सार्वजनिक जिला से सुनियोजित था मार्ग व्यवस्था तथा सुंदर नालियां के प्रावधान आज का अध्ययन आवश्यक है|
नगर निवेश:--
वास्तव में सिंधु सभ्यता अपनी विशिष्ट एवं उन्नत नगर योजना के लिए विश्व प्रसिद्ध है क्योंकि इतनी उच्च कोटि का 'वसति विन्यास' समकालीन इस नगर निवेश के अंतर्गत सभी नगरों को समांतर तथा एक दूसरे के समकोण पर काटती हुई सड़कों के आधार पर बसाया गया है इस विधि को आधुनिक काल में ''''ग्रिड प्लानिग''''कहा जाता है|इस प्रकार 4 सड़कों से गिरे आयत आयतों में आवासीय भवन तथा अन्य प्रकार के निर्माण किए गए हैं नगर योजना एवं वास्तुकला के अध्ययन हेतु इस सभ्यता के नगरों का उल्लेख प्रसांगिक प्रतीक होता है|
1 - हड़प्पा
2 - मोहनजोदड़ो
3 - चन्होदड़ो
4 - लूथर
5 - कालीबंगा|
1. हड़प्पा के उत्खनन से ज्ञात होता है कि यह नगर 3 मील के घेरे में बसा हुआ था यहां जो अग्निवेश जी प्राप्त हुई है उसमें स्थापित की दृष्टि में दुर्गा एवं रक्षा प्राचीर की अतिरिक्त निवास कृष्ण चबूतरो तथा अन्ना गारका विशेष महत्व है वास्तव में सिंधु सभ्यता का हड़प्पा मोहनजोदड़ो कालीबंगा एवं सूर्य कोटरा आदि की नगर निर्माण योजना में मुख्य रूप से समानता मिलती है इसमें से अधिकांश पूरा स्थानों पर पूर्व एवं पश्चिम दिशा में स्थित दो टीले हैं पूर्व दिशा में विद्यमान टीले पर नगर अथवा आवास क्षेत्र के साथ उपलब्ध है पश्चिम के अपेक्षाकृत ऊंचे बिंदु आकार में छोटे छोटे टीले पर घटिया दुर्गा के प्रमाण प्राप्त हैं गाय थी कि चारों और कच्ची ईंट की बनी हुई सुदृढ़ रक्षा प्राचीन है
संभवत हड़प्पा में गधी के अंदर समुचित ढंग से उत्खनन नहीं हुआ है अतएव वहां के भवनों के बारे में पर्याप्त जानकारी नहीं है यद्यपि 12 कमरे वाले एक वर्गाकार अनार का प्रमाण उपलब्ध है|
2. मोहनजोदड़ो:---
हड़प्पा की बात यहां का दुर्ग का एक तीली पर बना हुआ था जो दक्षिण की ओर 20 फीट तथा उत्तर की ओर 40 फीट ऊंचा था सिंधु नदी की बाढ़ के पानी के उसके बीच के कुछ भागों को काटकर उसे दो भागों में विभक्त कर दिया 1950 ईस्वी में उत्खनन के उपरांत यहां मत प्रतिपादित किया गया कि इस दुर्गा की रचना हड़प्पा सभ्यता के मध्य काल में हुआ है इस दुर्गा या कोटला की नीचे पक्की ईंटों की पक्की नाली का निर्माण किया गया था जिससे वह बाढ़ के पानी को बाहर निकाल सके उत्पन्न के इसके नीचे सभ्यता की 7 शर्तें प्रकाशित में हुई|
3. लूथर का प्राचीन:--
लूथर का टीला लगभग 19 फुट लंबाई 1000 फुट चौड़ाई तथा 20 फुट ऊंचाई है और सट्टा आविष्कार की जननी है इसी परंपरा के अनुरूप लोथल के निवासी नेपाल से रक्षा हेतु पहले कच्ची ईंटों का एक विशाल चबूतरा निर्मित किया तथा अंतर उसे पुनः और अधिक ऊंचा करके इससे चबूतरे को पांच विभिन्न कालो में पूरा किया इस चबूतरे पर एक मिट्टी का सुरक्षा प्राचीर का निर्माण किया गया जो 35 फुट चौड़ा तथा 8 फुट ऊंचा है 1957 के उत्खनन में प्राचीन बस्ती के चारों ओर एक बाहरी चबूतरे के अवशेष मिले यह चबूतरा कच्ची ईंटों से बना था
पाठ - 3
मौर्य कला
प्रश्न 1. मौर्य कला अथवा मौर्य कला पर विदेशी प्रभाव|
उत्तर- मोर्य काल पर विदेशी प्रभाव:-
मौर्यकालीन कला समस्त भारतीय कला में अनुपम है और यहां के काल भी दो एवं वस्त्र विचारों के कला कौशल के कारण सिंधु सभ्यता के पश्चात समुन्नत कला के रूप में कला के नए क्षितिजा को छूकर पश्चात विद्वानों और आचार्य चकित कर दिए मोर कला की उपलब्धियों एवं स्वभाव के व्यापकता के कारण कुछ पास्ता विद्वानों ने एक तर्क प्रस्तुत किया '''मौर्य कला पर विदेशी प्रभाव है'''
ऐसे ही विद्वानों में रोलैंड एवं डॉक्टर विसेंट स्मिथ ने यह मत प्रतिपादित किया कि मौर्यकालीन राज प्रसाद तथा सभामंडप ईरानी कला से लिया गया है स्मिथ ने कहा कि अशोक कालीन वक्त कला एवं मूर्तियों में अचानक रास्ता का प्रयोग बहुत अंशु में विदेशी संभवत और सिया का परिणाम है भगवत शरण उपाध्याय के मतानुसार भारतीय संस्कृत , लेखन,कला तथा मूर्तिकला पर मिश्रित इरानी प्रभाव पड़ा है इसके अतिरिक्त श्रीनाथ ने तो यहां तक कह डाला कि अशोक की चट्टानों पर लेख खुदवाने तथा धर्म अनुशासन के लिए स्तंभों का निर्माण पद्धति एक कलाई रानियों से नकल की है शायद वे बैक्ट्रिया की यूनानी कला ही थे जिन्होंने सारनाथ स्तंभ के चार सिंह आदि सिंघो आदि को बनवाया था उनकी पूर्व विधा पूर्ण कथन के कुछ अंश इस प्रकार के हैं '''भारतीय इतने कुशल ,चित्र एवं कलाबिद नहीं हो सकती इसलिए अशोक ने सभी कार्य ईरानी से सीखे''''
पश्चात 10 कारों के उपरांत कामत का तर्कपूर्ण विवेचना करते हुए डॉक्टर डीआर पांडा करने या तथ्यपरक खंडन किया कि यदि समुचित अशोक का स्तंभ इरानी यूनानी कलाकार निरूपण करता है तो वह बैक्टीरिया में विकसित हुई थी तो क्या कारण है कि स्वयं व्यक्तियों में यह उनके आसपास उदाहरण के लिए भारत के उत्तर पश्चिम भाग में उसका कोई नमूना नहीं मिलता यदि ऐसा नमूना नहीं मिलते तो इरानी यूनानी प्रभाव नहीं है
स्वतंत्रता में जो किसी भवन की अभिवादन अंगना हो बनने का विचार ना इरानी है और ना यूनानी बल्कि भारतीय है इसलिए अतिरिक्त अशोक के स्तंभ लेख में यह स्पष्ट है
भारत के प्राग ऐतिहासिक युग
Siddharth University तथा gorakhpur University
प्रश्न(1)-भारत की प्राग ऐतिहासिक चित्रकार पर एक निबंध लिखिए
या
भारतीय चित्रकला की प्रदोत ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए
उत्तर- चित्र में अंकित मूर्तियों को चित्र कहते हैं चित्रकार या सिर्फ के मन में जो मानसी शिफ्ट होती है उससे ही शिल्प और चित्र का जन्म होता है|
आदिमानव खुले जंगल में या नदी घाटियों में पत्थर के औजार से शिकार करता हुआ जीवन निर्वाह करता था उसके बाद वह नदी विरोधियों में जल की सुविधा देखकर वहीं प्राकृतिक कंगारू में रहने लगा उन्हें लोक भाषा में आज भी दरी कहते हैं इन गद्दारों की बात पर लाल गेरू तकिया धारू पत्थर से बनाए हुए बहुत से वंचित पाए गए हैं जिन्हें प्रस्तुत चित्र कहते हैं|लोक भाषा में उन्हीं के लिए रतक की पुतरिया शब्द चालू है ए
1- मध्यप्रदेश में महादेवी पहाड़ी में पंचवटी नामक स्थान के इर्द-गिर्द यहां एक के ऊपर एक चढ़ी हुई चित्रों की चार तहे मिलती हैं|
2- मध्यप्रदेश में रायगढ़ के समीप सिंघानपुर और कबरा पहाड़ के चित्र
3- बिंदकी कैमूर पर्वत माला के भीतर सोन नदी की घाटी के मिर्जापुर क्षेत्र में कई स्थानों में रतक की पुतरिया के चित्र विद्वान हैं|
4- बांदा जिले के मनकापुर स्थान में|
1 सबसे अधिक संख्या में दर्जी चित्र महादेवी पहाड़ी प्राप्त हुई है|पंचवटी के 5 मील के मंडल में 50 से ऊपर धारियों में चित्र मिलते हैं, ऐसे ही एक स्थान होशंगाबाद से ढाई मिल पर आजमगढ़ है|
कुछ विद्वान का कहना है कि इन चित्रों से उस युग के मानव की संस्कृत का व्यवहार परिचित प्राप्त होता है|लिखे हुए चित्र के ऊपर- नीचे चार परते हैं
पहली परत:--
इसमें कठखरे कड़े हुए जैसे चित्र हैं इसमें कुछ पहले के हैं कुछ बाद के| पहले की चित्र मनुष्य और पशुओं की पीली नुमा आकृति है जोब लाल और पीले रंगों में लिखी हुई है 4 तीलियों से गिरे हुए 10 दिन उमा झाड़ के ऊपर तिकोना सिर जोड़ा गया है और काया के भीतर की सुनी जगह में कुछ लहरिया दार खड़ी रेखाएं बनाई गई हैं मानो पेड़ की छाल और पलक जैसे वस्त्र की सूचक हो यह चित्र कुछ कम मिले हैं और इसके ऊपर दूसरी तरह के चित्र उन्हें ढूंढते हुए प्राप्त होते
दूसरी परत:-
इसमें भूरिया पीले रंग के चित्र भोड़े होते हुए भी स्वाभाविकता लिए हुए हैं यह भी पहले के और बाद के हैं पहले का चित्र बेडौल और कुछ स्वभाविक चाल के हैं उनकी गर्दन लंबी बाल लहराते हुए सिर बेलिया टांगे सिलाई जैसी और घाघरे किनारे किनारी दार है|उत्तर कालीन दूसरी श्रेणी के चित्रों में सम पूजन या एक जुट लिखने का स्वभाव भी आ गया है उनकी हाथों में प्राया धनुष बाण दिखाया गया है जो पहले के चित्रों में कहीं-कहीं था धातु की बनीनोक दार तीर जो पहली श्रेणी की मानो प्रयोग मिलना रहे थे दूसरी श्रेणी के युग में भी काम में आते हैं किंतु उसी के साथ गाजदार वालों का भी प्रयोग आमतौर पर होता रहा मानव धनुष बाण लेकर और पशुओं के मुखडे लगाकर थरथराहट पर एक नाच का सुख लूटते थे बांस की लंबी चिड़िया पर चढ़कर ऊंचे पेड़ों से याद झुकी हुई पहाड़ियों से लटकते साहब की छतों से जहर उतारने का भी इन्हें बहुत शौक था जो तीसरी श्रेणी के मानव में भी जारी रहा महादेवी पहाड़ी की कुछ अहेरिया और नाचते हुए चित्रों में तुल कालीन मिर्जापुर क्षेत्र के दरी चित्र हैं
तीसरा और चौथा परत:-
इसमें सांस्कृतिक रहन-सहन का नक्शा बदल जाता है आदिम कालीन शिकारियों के स्थान में शस्त्र धारी सैनिक और घुड़सवार घोड़ा धनुष बाण और तलवार से युद्ध करते हुए दिखाए गए हैं गायों के लिए धारा मारने वालों की चित्र भी हैं घरेलू जीवन के चित्र भी बहुत है|होशंगाबाद की निकट आजमगढ़ के दर्रे चित्रों में एक बड़े हाथी का चित्र है जो वहां सबसे पुराना है और दूसरे श्रेणी के उत्तर कालीन चित्रों के साथ काहे महादेव पहाड़ी के उत्तर कालीन तीसरे श्रेणी और महा पूर्व कालीन चौथी श्रेणी के चित्रों की चूड़ीदार वालों या खोपा टांगों के बीच में लाग दार धोती तीर कमान तरकस सीधी तलवार पति नुमा जूली और कॉल ढाल की चित्र भी मिलते हैं
3 मिर्जा क्षेत्र के चित्र:-
सिंघनपुर रायगढ़ के पुतरिया चित्र महानदी के क्षेत्र में हैंपंचवटी की चित्र नर्मदा नदी की जोड़ी में है और मिर्जापुर की दर से चित्र सोना नदी की घाटी में है यह तीनों नदियां घने जंगलों और पहाड़ियों से भरे हुए जहां आदि मानव सुरक्षा से निवास कर सकता है सोना नदी की घाटी में बनी चित्रों में खेत और नृत्य के चित्र हैं यहां कुछ कुछ सवाल पालतू घड़ी का हाथ लिया या कुंभ की की मदद से जंगली हाथी पकड़ते हुए दिखाया गया है मानव आकृतियां सूचित करती है कि यह चित्र पंचवटी की पहली दूसरी श्रेणी की पुत्रियां से मिलती है यहां के एक चित्र में एक चुटीला सूअर मुख बाय व्यथा का अनुभव करता हुआ दिखाया गया है|
चट्टानों पर खुदे चित्र:-
रतक की पुत्रियों की चित्र तो पहाड़ीखो की भीत या छत पर लिखे जाते थे किंतु चट्टानों पर खरोच ए हुए चित्र खुले स्थानों पर हैं लिखित चित्रों की अपेक्षा इन उत्कृष्ट चित्रों का विस्तार भी अधिक है अटक में लगभग 6 मील नीचे की और सिंध के किनारे बंद होगी पंजाब और घड़ियाल आ नामक स्थान में खुली चट्टानों पर खुद ही चित्रों में मानव और पशुओं की आकृति है जिसमें घोड़े ऊंट और हाथियों पर चढ़े हुए योद्धाओं हथियारों से लैस होकर लड़ते हुए दिखाए गए हैं उड़ीसा के संबलपुर हैदराबाद में रायचूर और मद्रास की बिलारी स्थान में चट्टानों पर खुदे हुए अनेक चित्र मिलते हैं इन्हें चित्र तो क्या चट्टानों की चितई करके बनाई हुई आकृतियां करना चाहिए
पाठ -2 घाटी की कला
प्रश्न 1- हड़प्पा की वस्तुओं की प्रमुख विशेषताओं पर प्रकाश डालिए?
या
भारतीय स्थापत्य कला की प्रमुख विशेषताओं की विवेचना कीजिए?
या
हड़प्पा के वक्त कला पर प्रकाश डालिए|
उत्तर--सिंधु सभ्यता में संपादित उल्टी खंडों पर एक विहंगम दृष्ट डालने से ज्ञात होता है कि यहां के निवासी महा निर्माणकर्ता थे --उनके स्थापत्य कौशल को समझने के लिए वहां की विकसित नगर योजना से संबंधित नगर निषेध सार्वजनिक तथा निजी भवन रक्षा प्राचीर सार्वजनिक जिला से सुनियोजित था मार्ग व्यवस्था तथा सुंदर नालियां के प्रावधान आज का अध्ययन आवश्यक है|
नगर निवेश:--
वास्तव में सिंधु सभ्यता अपनी विशिष्ट एवं उन्नत नगर योजना के लिए विश्व प्रसिद्ध है क्योंकि इतनी उच्च कोटि का 'वसति विन्यास' समकालीन इस नगर निवेश के अंतर्गत सभी नगरों को समांतर तथा एक दूसरे के समकोण पर काटती हुई सड़कों के आधार पर बसाया गया है इस विधि को आधुनिक काल में ''''ग्रिड प्लानिग''''कहा जाता है|इस प्रकार 4 सड़कों से गिरे आयत आयतों में आवासीय भवन तथा अन्य प्रकार के निर्माण किए गए हैं नगर योजना एवं वास्तुकला के अध्ययन हेतु इस सभ्यता के नगरों का उल्लेख प्रसांगिक प्रतीक होता है|
1 - हड़प्पा
2 - मोहनजोदड़ो
3 - चन्होदड़ो
4 - लूथर
5 - कालीबंगा|
1. हड़प्पा के उत्खनन से ज्ञात होता है कि यह नगर 3 मील के घेरे में बसा हुआ था यहां जो अग्निवेश जी प्राप्त हुई है उसमें स्थापित की दृष्टि में दुर्गा एवं रक्षा प्राचीर की अतिरिक्त निवास कृष्ण चबूतरो तथा अन्ना गारका विशेष महत्व है वास्तव में सिंधु सभ्यता का हड़प्पा मोहनजोदड़ो कालीबंगा एवं सूर्य कोटरा आदि की नगर निर्माण योजना में मुख्य रूप से समानता मिलती है इसमें से अधिकांश पूरा स्थानों पर पूर्व एवं पश्चिम दिशा में स्थित दो टीले हैं पूर्व दिशा में विद्यमान टीले पर नगर अथवा आवास क्षेत्र के साथ उपलब्ध है पश्चिम के अपेक्षाकृत ऊंचे बिंदु आकार में छोटे छोटे टीले पर घटिया दुर्गा के प्रमाण प्राप्त हैं गाय थी कि चारों और कच्ची ईंट की बनी हुई सुदृढ़ रक्षा प्राचीन है
संभवत हड़प्पा में गधी के अंदर समुचित ढंग से उत्खनन नहीं हुआ है अतएव वहां के भवनों के बारे में पर्याप्त जानकारी नहीं है यद्यपि 12 कमरे वाले एक वर्गाकार अनार का प्रमाण उपलब्ध है|
2. मोहनजोदड़ो:---
हड़प्पा की बात यहां का दुर्ग का एक तीली पर बना हुआ था जो दक्षिण की ओर 20 फीट तथा उत्तर की ओर 40 फीट ऊंचा था सिंधु नदी की बाढ़ के पानी के उसके बीच के कुछ भागों को काटकर उसे दो भागों में विभक्त कर दिया 1950 ईस्वी में उत्खनन के उपरांत यहां मत प्रतिपादित किया गया कि इस दुर्गा की रचना हड़प्पा सभ्यता के मध्य काल में हुआ है इस दुर्गा या कोटला की नीचे पक्की ईंटों की पक्की नाली का निर्माण किया गया था जिससे वह बाढ़ के पानी को बाहर निकाल सके उत्पन्न के इसके नीचे सभ्यता की 7 शर्तें प्रकाशित में हुई|
3. लूथर का प्राचीन:--
लूथर का टीला लगभग 19 फुट लंबाई 1000 फुट चौड़ाई तथा 20 फुट ऊंचाई है और सट्टा आविष्कार की जननी है इसी परंपरा के अनुरूप लोथल के निवासी नेपाल से रक्षा हेतु पहले कच्ची ईंटों का एक विशाल चबूतरा निर्मित किया तथा अंतर उसे पुनः और अधिक ऊंचा करके इससे चबूतरे को पांच विभिन्न कालो में पूरा किया इस चबूतरे पर एक मिट्टी का सुरक्षा प्राचीर का निर्माण किया गया जो 35 फुट चौड़ा तथा 8 फुट ऊंचा है 1957 के उत्खनन में प्राचीन बस्ती के चारों ओर एक बाहरी चबूतरे के अवशेष मिले यह चबूतरा कच्ची ईंटों से बना था
पाठ - 3
मौर्य कला
प्रश्न 1. मौर्य कला अथवा मौर्य कला पर विदेशी प्रभाव|
उत्तर- मोर्य काल पर विदेशी प्रभाव:-
मौर्यकालीन कला समस्त भारतीय कला में अनुपम है और यहां के काल भी दो एवं वस्त्र विचारों के कला कौशल के कारण सिंधु सभ्यता के पश्चात समुन्नत कला के रूप में कला के नए क्षितिजा को छूकर पश्चात विद्वानों और आचार्य चकित कर दिए मोर कला की उपलब्धियों एवं स्वभाव के व्यापकता के कारण कुछ पास्ता विद्वानों ने एक तर्क प्रस्तुत किया '''मौर्य कला पर विदेशी प्रभाव है'''
ऐसे ही विद्वानों में रोलैंड एवं डॉक्टर विसेंट स्मिथ ने यह मत प्रतिपादित किया कि मौर्यकालीन राज प्रसाद तथा सभामंडप ईरानी कला से लिया गया है स्मिथ ने कहा कि अशोक कालीन वक्त कला एवं मूर्तियों में अचानक रास्ता का प्रयोग बहुत अंशु में विदेशी संभवत और सिया का परिणाम है भगवत शरण उपाध्याय के मतानुसार भारतीय संस्कृत , लेखन,कला तथा मूर्तिकला पर मिश्रित इरानी प्रभाव पड़ा है इसके अतिरिक्त श्रीनाथ ने तो यहां तक कह डाला कि अशोक की चट्टानों पर लेख खुदवाने तथा धर्म अनुशासन के लिए स्तंभों का निर्माण पद्धति एक कलाई रानियों से नकल की है शायद वे बैक्ट्रिया की यूनानी कला ही थे जिन्होंने सारनाथ स्तंभ के चार सिंह आदि सिंघो आदि को बनवाया था उनकी पूर्व विधा पूर्ण कथन के कुछ अंश इस प्रकार के हैं '''भारतीय इतने कुशल ,चित्र एवं कलाबिद नहीं हो सकती इसलिए अशोक ने सभी कार्य ईरानी से सीखे''''
पश्चात 10 कारों के उपरांत कामत का तर्कपूर्ण विवेचना करते हुए डॉक्टर डीआर पांडा करने या तथ्यपरक खंडन किया कि यदि समुचित अशोक का स्तंभ इरानी यूनानी कलाकार निरूपण करता है तो वह बैक्टीरिया में विकसित हुई थी तो क्या कारण है कि स्वयं व्यक्तियों में यह उनके आसपास उदाहरण के लिए भारत के उत्तर पश्चिम भाग में उसका कोई नमूना नहीं मिलता यदि ऐसा नमूना नहीं मिलते तो इरानी यूनानी प्रभाव नहीं है
स्वतंत्रता में जो किसी भवन की अभिवादन अंगना हो बनने का विचार ना इरानी है और ना यूनानी बल्कि भारतीय है इसलिए अतिरिक्त अशोक के स्तंभ लेख में यह स्पष्ट है