परीक्षा की घड़ी
ऊर्जा
सामने खड़े किसी दीन- हीन को देखकर यह धारणा नहीं,बना लेनी चाहिए कि वह भिखारी है जो कि धर्म ग्रंथों में अनेक अनेक ग्रंथों में उल्लेखित है कि हमारे इष्ट देव जब भी परीक्षा लेने आते हैं तो अत्यंत दिन ही और भिखारी के रूप में ही आते हैं| भगवान विष्णु अत्यंत प्रतापी और दान का अहंकार पाली राजा बलि के पास नाटे- ठिकाने वामन का रूप बनाकर पहुंचे थे बस तीन पग जमीन दान में देने के लिए कहा राजा बलि भगवान की परीक्षा में इसलिए उचित हो गए क्योंकि उनके गुरु शुक्राचार्य ने यह बताया कि यह याचक नहीं स्वयं विष्णु जी हैं|
राजा बलि प्रसन्न हुए कि जब भगवान विष्णु याचक बनकर आए हैं तो फिर इनकार करना उचित नहीं वहां मन बने विष्णु जी ने दान का अहंकार समाप्त करने एवं चिंतन को बदलने के क्रम में ही बल के सिर पर चरण रख दिया|
इसका निष्कर्ष यही है कि हमारे आसपास या हम जानकारी में कोई किन्ही कारणों से पीड़ित है और उसकी जानकारी हमें मिलती है तो यह मानना चाहिए कि इष्टदेव हमारी परीक्षा ले रहे हैं राह चलते कोई असहाय दिखा और हम आगे बढ़ गए तो हम परीक्षा में अनुत्तीर्ण हो गए|प्रातः भोज आदि के कार्यक्रमों में बिना परिचय का कोई असहाय आ जाता है तो लोग उसे अपमानित कर भगा देते हैं|जबकि इस तरह के कार्यक्रमों का निमंत्रण बहुत से लोग मंदिरों में चढ़ाते हैं|
इन दिनों तो यह मानकर चलना चाहिए कि देवी - शक्तियां परीक्षा ले रही हैं आधारभूत प्राकृत आघातो के इस कालखंड में यदि हम समक्ष होकर भैया कहते हैं कि हमारे पास तो कुछ नहीं है कि हमारे पास अपना मूल्यांकन असहाय और निर्धन के रूप में व्यक्त की किया है कहीं वह सही ना हो जाए इसलिए समझ होकर खुद को , असमर्थ का मूल्यांकन नहीं करना चाहिए,पूजा पाठ की कथाओं में दिए गए संदेशों को हमें जीवन में आत्मसात करना चाहिए